The Train... beings death 21
आत्मानंद और वैदिक दरवाजे तक पहुंचते उससे पहले ही दोनों जानवरों ने वैदिक और आत्मानंद को अपने मुंह में पकड़ लिया था। यह देख कर कमल नारायण और गौतम दोनों ही डर गए थे। आचार्य भी उस अज़ीब जानवर को देखकर बहुत घबरा गए थे।
जल्दी ही वो अज़ीब जानवर आत्मानंद और वैदिक को खा गये। उन दोनों को खाने के बाद दोनों जानवर धीरे धीरे चलते हुए उस आयाम द्वार तक पहुंच गए। आचार्य, गौतम और कमल तीनों ही घबराए हुए उस विचित्र जीव को देख रहे थे। कमल और गौतम की तो डर और अपने मित्रों को खो देने के कारण बहुत ही बुरी हालत थी। वहीं आचार्य भी उन विचित्र जीवों को देखकर थोड़ा सदमे में थे।
आयाम द्वार बंद होने में अभी भी पांच मिनट बाकी थे। जल्दी ही आचार्य को समझ में आ गया कि अगर उन्होंने जल्दी ही कुछ नहीं किया तो वो जीव धरती पर आ ही जायेंगे। तभी अचानक आचार्य का दिमाग तेजी से काम करने लगा। उनके दिमाग में तुरंत एक विचार आया और उस विचार के आते ही उनके हाथो ने आचार्य के मस्तिष्क में बनती रूपरेखा की तेजी से काम करना शुरू कर दिया। उन्होंने आसपास रखी सामग्री को गौर से देखा और सभी अपने जरूरत की सामग्री फटाफट उठा ली।
आचार्य ने एक नजर आयाम द्वार पर डाली। आचार्य ने देखा कि वो जीव धरती पर कदम रखने से केवल दस पग दूर थे। उन्होंने तुरंत ही जमीन पर पास रखी वस्तुओं से एक विचित्र षटकोणीय यन्त्र का निर्माण करना शुरू कर दिया। वो यंत्र एक विशेष प्रकार का यन्त्र था जो अगर, तगर, धूप, कपूर, अष्टगंध, गुलाल और रक्त चन्दन के प्रयोग से बनाया गया था। यन्त्र के मध्य भाग में अष्टगंध, गुलाल और रक्त चन्दन के प्रयोग से एक विशिष्ट स्वास्तिक की रचना की थी जिस पर कपूर और धूप से एक छोटी यज्ञवेदी का निर्माण किया है था।
जिस हवन कुंड से उस आयाम द्वार को खोला गया था.. वो हवन कुंड अब दूषित हो चुका था। एक सात्विक हवन कुंड में राहुकाल के समय यज्ञ आरम्भ करके उस हवन कुंड में बालकों के हाथ से गलत आहुति डल चुकी थी। इसीलिए अब वो हवन कुंड काम नहीं आने वाला था तो आचार्य अभी बनाये नए हवन कुंड में आहुति डालने के लिए मंत्र पढ़ने लगे।
आचार्य का पहला मंत्र पूर्ण हुआ और जैसे ही उन्होंने अपनी पहली आहुति हवन कुंड में डाली उस समय वो विचित्र जीव आयाम द्वार से बस दो ही पग की दूरी पर थे। कभी भी किसी भी पल वो दो पग की दूरी समाप्त हो सकती थी। कमल नारायण और गौतम तो बस जड़ ही हो गये थे। आचार्य को अपने साथ साथ समस्त गुरुकुल के छात्रों के साथ ही भवानीपुर और भारतवर्ष की चिंता होने लगी थी।
पहली आहुति के डलते ही ऐसा लगा जैसे किसी शक्ति ने उन जीवों के पैर रोक लिए थे। दोनों ही जीव बड़ी मशक्कत करते हुए नज़र आ रहे थे पर उनकी सारी मेहनत बर्बाद होती नज़र आ रही थी। बहुत कोशिशों के बाद भी वो दोनों जीव अपने पैर हिला भी नहीं पा रहे थे। दूसरी तरफ आचार्य का मंत्र जाप के साथ हवन कुंड में आहुतियां डालने का सिलसिला बिना किसी रुकावट के चलता ही जा रहा था। वह विचित्र जीव चाह कर भी अपने कदम आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे.. उनमें से एक ने अपना एक कदम पीछे रखने की कोशिश की तो उसका पैर पीछे चला गया।
पैर पीछे जा सकता था ये सोचकर उस जीव ने अपने कुछ कदम पीछे रखे और फिर जैसे ही उसने फिर से अपने कदम द्वार की दिशा में आगे बढ़ाने की कोशिश की तो फिर से वही हुआ। उन जानवरों के पैर आयाम द्वार की दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। पीछे या इधर उधर करने पर वो चल पा रहे थे लेकिन कितनी ही कोशिशों के बाद भी आगे बढ़ना उनके लिए असंभव हो चुका था।
धीरे-धीरे आयाम द्वार बंद होने का समय होता जा रहा था और दूसरा आचार्य द्वारा उन जानवरों को वहीँ उनके आयाम में रोके रखने के लिए किया जाने वाला हवन भी अपनी पूर्णता की ओर अग्रसर था। द्वार बंद होने की अंतिम घड़ी में ही आचार्य ने अपने हवन की अंतिम आहुति दी। उस अंतिम आहुति के साथ ही आयाम द्वार का द्वार बंद हो गया।
द्वार के बंद होते ही कमल नारायण ने राहत की साँस ली।"
इतना बोलते ही कमल नारायण की सांसे उखड़ने लगी थी। इंस्पेक्टर कदंब ने जैसे ही ये देखा उसने तुरंत नीरज को कहा, "जल्दी से डॉक्टर को बुला कर लाओ!"
नीरज फटाफट जाकर डॉक्टर को बुला लाया। डॉक्टर ने आकर कमल नारायण को एग्जामिन किया और एक इन्जेक्शन देकर कदंब से कहा, "इंस्पेक्टर.. अभी कमल जी की हालत बहुत अच्छी नहीं है। इस वक्त उन्हें किसी भी तरह का स्ट्रेस देना उनकी जान के लिए रिस्की हो सकता है। होप आप समझ सकते हैं।"
कदंब ने अपनी गरदन हाँ में हिला दी तभी नीरज ने कहा, "जी डॉक्टर.. हम समझ सकते है। पर आपसे एक रिक्वेस्ट है.. जैसे ही ये बात करने लायक हो आप हमें इन्फॉर्म कर दीजियेगा। भवानीपुर के भविष्य और सुरक्षा का सवाल है।"
सब-इंस्पेक्टर नीरज की बातें सुनकर डॉक्टर थोड़ा परेशान हो गया था। उसने कंफ्यूजन से कदंब की तरह देखकर नीरज की तरफ इशारा करते हुए पूछा, "क्या मतलब है आपका..??"
"कुछ भी नहीं.. बस आपके पेशेंट हमारे एक पुराने और अनसोल्व्ड केस के प्राइम विटनेस हैं। बस इसीलिए हमें इनसे कुछ जरूरी पूछताछ करनी है ताकि आगे की जानकारी मिल सके।" इंस्पेक्टर कदंब ने बात को संभालते हुए कहा।
"जी बिल्कुल.. हम आपको इस बात की खबर कर देंगे।" डॉक्टर ने कहा।
डॉक्टर के इतना बोलने के बाद इंस्पेक्टर कदंब और नीरज दोनों ही कमल नारायण के कमरे के बाहर निकल गए। जैसे ही बाहर कॉरिडोर में पहुंचे नीरज ने पूछा, "सर आपको लगता है कि आज के टाइम में आयाम द्वार जैसी चीजें हो सकती है?"
नीरज के इतना कहते ही इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज को घूर कर देखा तो नीरज सकपका गया और बोला, "नहीं सर..! मेरा मतलब है कि जो भी कुछ कमल नारायण जी ने बताया वैसा कुछ आज के टाइम में पॉसिबल है? क्योंकि साइंस इतनी ज्यादा तरक्की कर चुका है कि तंत्र मंत्र जैसा कुछ आज के टाइम में सोचना भी पॉसिबल नहीं।"
नीरज की बात सुनकर कदंब ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा, "ऐसा नहीं है नीरज..! अगर हम व्हाइट पर विश्वास करते हैं तो ब्लैक के होने की पॉसिबिलिटीज को नकार नहीं सकते। जैसे हम भगवान पर विश्वास करते हैं तो शैतानों पर भी विश्वास करना ही होगा। उसी तरह हम अगर भगवान के चमत्कार को मान सकते हैं तो तंत्र मंत्र को क्यों नहीं मान सकते?"
नीरज ने गर्दन हिलाकर कहा, "जी सर समझ गया। लेकिन एक बात और समझ में नहीं आई?"
इंस्पेक्टर कदंब ने घूर कर नीरज की तरफ देखा और फिर अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा, "यार तुम सारी बातें एक बार में क्यों नहीं समझ जाते?" इतना कहकर कदंब हंसने लगे। इंस्पेक्टर कदंब के हंसने का कारण जैसे ही नीरज को समझ में आया नीरज ने चढ़कर मुंह बना लिया और चुपचाप चलने लगा। नीरज के ऐसे चुपचाप चलने से इंस्पेक्टर कदंब को भी अच्छा नहीं लग रहा था।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "अच्छा छोड़ो..! तुम ऐसे मुंह बनाकर अच्छे नहीं लगते। यार इतनी टेंशन के माहौल में मैंने थोड़ा सा मजाक कर दिया तो तुम्हें बुरा लग गया?"
"नहीं सर..! ऐसा नहीं है।" सब इंस्पेक्टर नीरज ने कहा।
"तो फिर कैसा है? बताओ.?" इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज की तरफ देखते हुए पूछा।
"सर..! जैसा की अभी कमल नारायण जी ने बताया कि उनके गुरु आचार्य चतुरसेन ने उस आयाम द्वार को उन विचित्र जीवों के बाहर निकलने से पहले ही बंद करवा दिया था। दरवाज़ा भी टाइम से ही बंद हो गया था तो इस सब में कमल नारायण जी की क्या गलती थी वह तो बच्चे थे ना। जो भी कुछ किया था वह तो गौतम ने किया था!"
नीरज के सवाल सुनकर इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज को घूरा तो नीरज ने अपनी बात संभालते हुए कहा, 'मेरा मतलब है सर.. उस टाइम भले ही गौतम भी बच्चा था.. उसे अपने माता-पिता के बारे में जानने की क्यूरियोसिटी थी इसलिए उसने वह सब कुछ किया। फिर भी डायरेक्टली तो कमल नारायण जी का कोई दोष नहीं। फिर वह इतने गिल्ट में क्यों है?"
इंस्पेक्टर कदंब को नीरज का सवाल लॉजिकल लगा लेकिन इस टाइम इस सवाल का जवाब इंस्पेक्टर कदंब के पास भी नहीं था। वह भी नहीं समझ पा रहे थे कि इस सब के पीछे कमल नारायण जी का किस तरह से हाथ था? इंस्पेक्टर कदंब को सोच में डूबा देख नीरज ने उन्हें हिलाते हुए पूछा, 'क्या हुआ सर?? कहां खो गए? कोई प्रॉब्लम है?"
नीरज के सवालों से इंस्पेक्टर कदंब वर्तमान में लौटे और बोले, "नहीं..! नहीं ऐसा कुछ नहीं है। मैं बस तुम्हारे सवालों के बारे में सोच रहा था। इन्हीं सवालों के जवाब तो मुझे भी कमल नारायण जी से चाहिए। होप कि कमल नारायण जी जल्दी से जल्दी सारे सवालों के जवाब देने में सक्षम हो जाए। क्योंकि जितनी देर से हमें सारी बातें पता चलेंगी। उतनी ही मुश्किल हमें हर चीज को संभालने में होगी।"
नीरज ने भी इंस्पेक्टर कदंब की बातों में हां में हां मिलाई। तब तक इंस्पेक्टर कदंब और नीरज हॉस्पिटल से बाहर निकल चुके थे। उस टाइम रात के लगभग 8:00 बज चुके थे। इतनी देर से पुलिस स्टेशन जाकर भी कुछ नहीं होता और डॉक्टर शीतल की लैब में जाने का इंस्पेक्टर कदंब का मन नहीं था।
इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज की तरफ देखते हुए कहा, "यार बहुत दिन हो गए शांति से सोए नहीं है। ऐसे चलता रहा तो भवानीपुर तो छोड़ो खुद की जान नहीं बचा पाऊंगा? एक काम करते हैं... आज शांति से घर चल कर सोते हैं। कल सुबह उठकर सोचेंगे कि क्या करना है?"
इंस्पेक्टर कदंब की बात सुनकर नीरज थोड़ा उदास हो गया। नीरज को उदास देख कर कदंब ने पूछा, "क्या हुआ? अब तुम्हारी कौन सी गर्लफ्रेंड भाग गई जो ऐसे मुंह बना रखा है?"
"क्या बताऊं सर? आज तो घर नहीं जा सकता।" नीरज ने उदास होकर कहा।
"क्यों ऐसा क्या हो गया जो घर नहीं जा सकते? मकान मालिक ने घर से निकाल दिया क्या?" इंस्पेक्टर कदंब ने मजाक में पूछा।
"सर मैं घर पर तो रहता नहीं हूं। एक पीजी में रहता हूं.. अपने एक फ्रेंड के साथ और आज उसकी गर्लफ्रेंड आने वाली है। उसने मुझे कहा है कि आज रात में पुलिस चौकी में ही सो जाऊं। तो सोच रहा हूं खाना खाकर पुलिस स्टेशन में ही सो जाऊंगा।" नीरज ने उदास होकर कहा।
"अच्छा छोड़ो एक काम करो! तुम मेरे घर चलो दोनों मिलकर खाना खाएंगे और मस्त सोएंगे। कल देखेंगे कि इन सारी टेंशन का करना क्या है?"
नीरज इंस्पेक्टर कदंब के इस प्रस्ताव से बहुत खुश हो गया और दोनों ही पुलिस जीप में बैठकर इंस्पेक्टर कदंब के घर पहुंच गए।
इंस्पेक्टर कदंब एक 2BHK फ्लैट में रहते थे। छोटा सा साफ सुथरा घर था। बहुत ज्यादा फर्नीचर नहीं था.. किचन में भी बस जरूरत भर का ही सामान था.. जो अपनी जगह पर व्यवस्थित रखा हुआ था। देखने में एक नॉर्मल मिडिल क्लास आदमी का घर लग रहा था।
नीरज ने घर के अंदर घुसते ही हर एक चीज को गौर से देखना शुरू कर दिया। इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज को ऐसे देखते हुए देखा तो मुस्कुरा कर कहा, "तुम भूल रहे हो कि इस टाइम तुम एक पुलिस वाले के घर में हो? इसीलिए इतनी बारीकी से कुछ भी चीज देखने की जरूरत नहीं है।"
इंस्पेक्टर कदंब की बात सुनकर नीरज ने अपनी गर्दन झुका ली। कदंब ने मुस्कुराकर नीरज के कंधे पर हाथ रखा और कहा, "आते-आते मैंने खाना ऑर्डर कर दिया था। बस कुछ ही देर में आता होगा। मैं फ्रेश होकर आता हूं तब तक तुम खाना ले लेना।"
नीरज ने अपनी गर्दन हां में हिलाई और इंस्पेक्टर कदंब तेजी से अलमारी से तौलिया निकालकर बाथरूम में चले गये। नीरज घर की हर एक छोटी से छोटी चीज ध्यान से देख रहा था। दीवार पर कुछ तस्वीरें लगी हुई थी जिनमें एक छोटा बच्चा एक कपल की गोदी में था। एक और तस्वीर में एक छोटा बच्चा एक पप्पी के साथ खेल रहा था। पास ही की दीवार पर एक छोटा सा शोकेस बना हुआ था जिसमें कुछ ट्रॉफी और बहुत सी किताबें रखी हुई थी।
इंस्पेक्टर कदंब जब तक फ्रेश होकर आए तब तक नीरज उन सब चीजों को देख रहा था। इंस्पेक्टर कदंब ने कहा, "खाना तो आया नहीं होगा?"
नीरज ने अपनी गर्दन ना में हिलाई तो इंस्पेक्टर कदंब ने एक तौलिया नीरज को देते हुए कहा, "तुम भी फटाफट से फ्रेश हो जाओ। तब तक खाना आ जाएगा।"
नीरज फ्रेश होने चला गया और जब वापस लौटा तब इंस्पेक्टर कदंब खाना परोस रहे थे। नीरज के आते ही दोनों ने खाना खाया और फिर आराम करने लगे। नीरज को लेटते ही ही नींद आ गई थी। जबकि कदंब पिछले दिनों हुए सारे घटनाक्रम के बारे में ही सोच रहा था।
हर एक चीज रील के समान इंस्पेक्टर कदंब की आंखों के आगे चल रही थी। रह रहकर ऐसी कोई तो बात थी जो इंस्पेक्टर कदंब को खटक रही थी। उन सब के बीच कुछ तो अजीब कनेक्शन था। वह क्या था?? उसके बारे में पता लगाना जरूरी था।
इसी बीच इंस्पेक्टर कदंब का ध्यान नीरज के सवालों पर गया.. जो नीरज ने हॉस्पिटल में पूछे थे। इंस्पेक्टर कदंबी यही सोचने लगा कि आखिर ऐसी क्या वजह थी जिसके लिए कमल नारायण बोल रहे थे कि सब कुछ उन्हीं की वजह से हुआ था? उस समय उन्हीं की गलती थी।
काफी रात तक इंस्पेक्टर कदंब इन्ही सवालों में उलझे इधर से उधर करवटें बदल रहे थे। आधी रात के बाद इंस्पेक्टर कदंब की आंख लगी थी। जैसे ही इंस्पेक्टर कदंब की आंख लगी.. वैसे ही इंस्पेक्टर कदंब का फोन रिंग करने लगा। कुछ देर तक तो इंस्पेक्टर कदंब ने कान पर तकिया रखकर उस फोन को इग्नोर करना शुरू कर दिया। इंस्पेक्टर कदंब के बगल में सोया नीरज ऐसे लग रहा था जैसे घोड़े बेचकर सोया था.. फोन के रिंग की आवाज भी नीरज को परेशान नहीं कर पा रही थी। फोन लगाता बजे जा रहा था।
लगातार दो तीन कॉल आ चुकी थी। जब चौथा कॉल बजा तो हारकर इंस्पेक्टर कदंब को कॉल उठाना पड़ा। फोन उठाने पर.. स्क्रीन पर उसी हॉस्पिटल का नाम फ्लैश हो रहा था.. जिस हॉस्पिटल में कमल नारायण जी एडमिट थे। कुछ सोचते हुए इंस्पेक्टर कदंब ने फोन उठाया तो सामने से एक घबराई हुई आवाज आई, "हेलो..! हेलो.. इंस्पेक्टर कदंब..!! एक अर्जेंसी है..??" इतना कहते ही फोन कट गया।
क्रमशः....
Punam verma
27-Mar-2022 05:50 PM
अब क्या होगा आगे ?
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